जैविक कृषि एवं पर्यावरण संतुलन (राजनांदगांव जिला, छत्तीसगढ़ के विषेष संदर्भ में)

 

डाॅ. निवेदिता . लाल,

सहायक प्राध्यापक, भूगोल, शासकीय कमला देवी राठी महिला महाविद्यालय, राजनांदगाव (..)

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शोध सारांश:

खाद्य सुरक्षा के नाम पर वैश्विक बाजार की ताकतों ने कृषि क्षेत्र को भी एक दुधारू गाय के रूप में ही देखा है। खाद, बीज, दवाईयाॅ बेचने वाले इन राक्षसी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की अन्तहीन लाभ लालसा ने खेती को एक ऐसे खतरनाक कार्य के रूप में परिणित कर दिया है, जो कि खेती करने वाले किसान, उसकी भूमि, जलस्त्रोत, आस-पास की वनस्पतियों, पर्यावरण तथा ऐसी खेती से उत्पन्न कृषि उत्पादों का उपभोग करने वाले उपभोक्ता परिवारों के लिये, पशु-पक्षी सभी के लिये गम्भीर रूप से हानिकारक तथा घातक सिद्ध हुई है। जैविक खेती कृषि तकनीकी केवल पर्यावरण सुरक्षा एवं मानव स्वास्थ्य की दृष्टि से उत्तम है, बल्कि रासायन आधारित खेती की तुलना में, कम लागत से अधिक लाभ पहुॅचाने वाली एवं कृषि के लम्बे समय तक के टिकाऊपन के लिये भी उपयोगी है। जैविक खेती में प्रयोग होने वाले जैविक खाद किसान स्वयं बना सकते हैं।तथा जैविक कीटनाशकों के प्रयोग से प्र्यावरण को सुरक्षित रखा जा सकता है एवं रासायनिक कीटनाशियों की खपत को भी काफी हद तक कम किया जा सकता है।

 

ज्ञम्ल्ॅव्त्क्ैरू वैष्विक बाजार, उन्नत कृषि, जैविक खेती, रासायनिक खाद, जैविक कीटनाषक

 

 

 

 

 

 

 

 

प्रस्तावनाः-

जैविक खेती इस नीले ग्रह के लिये वर्तमान में जितनी आवश्यक हो गई है, उतनी पहले कभी भी नहीं थी। विगत कुछ दशकों में रासायनिक खाद, जहरीली दवाओं तथा अनुवांषिक जोड़-तोड़ से तैयार नई किस्मों के प्रयोग से इस नीले ग्रह की भूमि, जलस्त्रोत तथा पारिस्थितिक तंत्र बुरी तरह से प्रभावित हुये हैं। ग्लोबल वार्मिंग, नई बिमारियों का अविर्भाव आदि इसी दूषित कृषि पद्धति तथा नवजनित उद्योगों की देन है।

इन दषाओं में, हमारे पास अपनी परम्परागत कृषि पद्धति की ओर लौटना ही एकमात्र मार्ग शेष रह गया है।

 

अध्ययन क्षेत्र:-

छत्तीसगढ़ राज्य के उत्तर-पूर्वी भाग में राजनांदगांव जिला स्थित है। जिसका अक्षांशीय विस्तार 19̊ 57̍उत्तर से 21̊42̍  उत्तर एवं देषान्तरीय विस्तार 82̊ 23̍ पूर्व से 81̊ 30̍ पूर्व है। कुल क्षेत्रफल 8022ण्55वर्ग कि.मी. है, जो कि छत्तीसगढ़ राज्य का 5ण्93 है। इसके अंतर्गत 9 तहसीलें -छुईखदान, खैरागढ़, डोंगरगढ़, राजनांदगांव, छुरिया, डोंगरगांव, अंबागढ़ चैकी, मोहला एवं मानपुर अवस्थित है। भौगोलिक दृष्टि से यह जिला षिवनाथ नदी के अधिग्रहण क्षेत्र में आता है। समुद्रतल से इसकी ऊंचाई 330ण्70 मीटर है तथा औसत वार्षिक वर्षा 934ण्9 मि.मि. है।

 

आंकड़ो का स्त्रोत:-

अध्ययन द्वितीयक आंकड़ों पर आधारित है जैसे - जिला सांख्यिकी पुस्तिका 2014, पुस्तक एवं आलेख।

 

जैविक खेती  के उद्देश्य:-

01.    मृदा की भौतिक रासायनिक गुणों को चिरस्थायी बनाये रखना।

02.    उच्च गुणवत्ता वाले भोजन का पर्याप्त मात्रा में उत्पादन।

03.    सुरक्षित पर्यावरण के साथ-साथ उत्पादकों का पर्याप्त उपज प्राप्त कराना।

04.    कृषि पद्धति के विस्तृत सामाजिक तथा पारिस्थितिकी प्रभाव का ध्यान रखना।

05.    कृषि तकनीकी उपयोग में उत्पन्न प्रदूषण के कारकों को समाप्त करना।

06.    स्थानीय कृषि क्रियाओं तथा ऊर्जा नवीनीकरणीय स्त्रोतों का खेती में उपयोग।

07.    मृदा लाभदायी जीवों से संबंधित जैविक क्रियाओं को बढ़ावा देना।

08.    कार्बनिक तथा पोषक तत्वों वाले हरसंभव तंत्र को सम्मिलित कराना।

09.    मृदा की दीर्घकालीन उर्वरता एवं उत्पादकता में वृद्धि तथा रासायनिक उर्वरकों का न्यूनतम उपयोग।

 

उन्नत कृषि हेतु रासायनिक खाद का उपयोगः-

कृषि उत्पादकता को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करने वाले कारकों में उर्वरक सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। साथ ही भूमि की पुनरूत्पादकता बनाये रखने के लिये उर्वरकों का प्रयोग आवश्यक होता है। बढ़ती जनसंख्या की पूर्ति के लिये खाद्यान्नों की उत्पादकता में वृद्धि लाने जिले में रासायनिक खादों का प्रयोग प्रतिवर्ष बढ़ता चला जा रहा है।

 

 

 

 

रासायनिक खाद उपयोग की बढ़ती मात्रा से मृदा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है तथा उत्पादन की गुणवत्ता में निरंतर हृास होता चला जा रहा है, जिसका प्रत्यक्ष प्रभाव मानव के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है।     

 

 

 

जैविक कृषि की विषेषता जानने के पश्चात् जिले के किसानों का रूझान जैविक कृषि की ओर बढ़ रहा है। जैविक कृषि के लिये स्वाभाविक है कि पोषक तत्वों की पूर्ति के लिये जैविक पदार्थों पर निर्भर रहना पड़ेगा। राजनांदगांव जिले में जैविक पदार्थों की इतनी मात्रा उपलब्ध हो कि कार्बनिक खेती हो सके।

 

 

 

 

छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा जैविक खेती प्रोत्साहन हेतु योजना भी चलाई जा रही है -‘‘जैविक खेती मिशन’’ जिसके अंतर्गत किसानों का प्रशिक्षण, राज्य के बाहर शैक्षणिक भ्रमण, किसान मेला का आयोजन, जैविक कृषि तकनीकी पर फसल प्रदर्शन जैसे कार्य सम्मिलित हैं।

 

जैविक खेती  के लाभ:-

01.    जैविक खादों के प्रयोग से मिट्टी की जलधारण क्षमता और वायु संचार बढ़ जाता है, जो फसल वृद्धि में सहायक होती है।

02.    जैविक खादों के उपयोग से मृदा तापमान नियंत्रित रहती है, जिससे मृदा में सूक्ष्म जीवों को क्रियाषील बनाये रखने में सहायता मिलती है।

03.    जैविक खादें मृदा कटाव को रोकने में सहायक होती है।

04.    जैविक पदार्थों के सड़ने-गलने से कुछ ऐसे रासायनिक एवं जैव रासायनिक पदार्थ बनते हैं, जो मिट्टी के कणों को आपस में बांधते हैं। इससे मिट्टी की संरचना में सुधार तथा पौधों की वृद्धि और विकास अच्छा होता है।

05.    नीम की पत्तियों का रस तथा नीम के तेल का प्रयोग कीट नियंत्रण हेतु अत्यंत लाभकारी सिद्ध हुआ है।

06.    जैविक खेती द्वारा मृदा में रसायनों की विषाक्तता कम होती है। इस प्रकार पर्यावरण संतुलन रहता है।

07.    जैविक खेती से उत्पन्न अनाज एवं फल-सब्जी, प्राकृतिक एवं उत्तम गुणवत्तायुक्त होते है, जो मानव स्वास्थ्य के लिये उत्तम माने जाते है।

08.    जैविक खेती में मृदा की उर्वरता एवं उत्पादकता लंबे समय तक बनाये रखी जा सकती है।

09.    जैव उर्वरकों तथा जैव व्याधि नाशकों के प्रयोग से फसल उत्पादन लागत कम आती है, अतः सीधा आर्थिक लाभ किसानों को मिलता है।

10.    कार्बनिक पदार्थों से कार्बनिक अम्ल उत्पन्न होता है, जो भूमि की क्षारीयता को कम कर देते हैं।

 

जैविक उर्वरक प्राप्ति केन्द्र:-

01.    कृषि विज्ञान केन्द्र।

02.    कृषि विभाग छत्तीसगढ़।

03.    कृषि महाविद्यालय रायपुर के सूक्ष्म जीव विज्ञान विभाग।

04.    बाजार में कृषि सेवा केन्द्र।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

कीटनाषियों के अंधाधुन उपयोग से मित्र कीटों को भी काफी नुकसान पहॅुचता है तथा इन सभी नुकसानों के लिए जैविक कीटनाशी ही एक मात्र विकल्प है। जैविक कीटनाशक विभिन्न प्रकार के जीवों जैसे-कीटों, फफूॅदी, जीवाणुओं तथा वनस्पतियों का उत्पाद होते है।

 

जैविक कीटनाषियों के उपयोग से लाभ -

1.     जैविक कीटनाशी पर्यावरण, मानव स्वास्थय पषुओं के लिए हानिकारक नही होता है। इनके उपयोग से पर्यावरण परिस्थितिकी तंत्र का संतुलन बना रहता है।

2.     कीटों में इनके प्रति प्रतिरोधक क्षमता नही उत्पन्न हो पाती है।

3.     जेविक कीटनाशकों के प्रयोग के तुरन्त बाद फल सब्जियों अन्य उत्पादों को उपयोग में लाया जा सकता है।

4.     जैविक उदभव होने के कारण ये शीध्र ही अपधटित हो जाते है अवशेष की समस्या नही रहती है।

5.     ये कीटनाषी  केवल पोषी कीट पर ही आक्रमण करते है तथा अन्य लाभप्रद जीव इनसे सुरक्षित रहते है।

 

निष्कर्ष:-

जैविक खेती कृषि तकनीकी केवल पर्यावरण सुरक्षा एवं मानव स्वास्थ्य की दृष्टि से उत्तम है, बल्कि रासायन आधारित खेती की तुलना में, कम लागत से अधिक लाभ पहुॅचाने वाली एवं कृषि के लम्बे समय तक के टिकाऊपन के लिये भी उपयोगी है। जैविक खेती में प्रयोग होने वाले जैविक खाद किसान स्वयं बना सकते हैं।तथा जैविक कीटनाशकों के प्रयोग से प्र्यावरण को सुरक्षित रखा जा सकता है एवं रासायनिक कीटनाशियों की खपत को भी काफी हद तक कम किया जा सकता है।

 

सुझाव:-

01.    रासायनिक उर्वरकों के लगातार प्रयोग से मृदा एवं उत्पादकता की गुणवत्ता में हृास से किसानों को अवगत कराया जाये।

02.    रासायनिक खेती से जैविक खेती की ओर जाने से प्रारंभिक 2-3 वर्षों में उत्पादन में गिरावट आयेगी, इस हेतु किसानों को आर्थिक मदद की जानी चाहिए।

03.    जैविक खाद एवं जैविक कीटनाशी हेतु कृषकों को प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए।

04.    फसल के रोगों हेतु जैविक दवाईयों का उपयोग किया जाना चाहिए।

            

संदर्भ ग्रंथः-

1ण्    कृषि भूगोल - डाॅ. अलका गौतम, शारदा पुस्तक भवन, इलाहाबाद।

2ण्    कृषि वल्र्ड - अंक 1, अगस्त 2016

3ण्    कृषि वल्र्ड - अंक 11, जून 2017

4ण्    कृषि वल्र्ड - अंक 10 मई 2016

5ण्    ,, एक भौगोलिक अघ्ययन - तिवारी वी.के. - हिमालया पब्लि. नई दिल्ली।

6ण्    राजनांदगाॅव जिला साख्यिकी पुस्तिका 2014

 

 

 

 

 

 

Received on 05.08.2018                Modified on 03.09.2018

Accepted on 24.09.2018            © A&V Publications All right reserved

Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 2018; 6(4): 525-530.